मौलाना सअ़द साहब... /भोपाल ईज्तिमा 2019 आख़री बयान .... 

भोपाल ईज्तिमा 2019 आख़री बयान से.... 
मौलाना सअ़द साहब... 


ये मुमकिन नहीं के मुसलमान नमाज़ छोड़ दे.. ये तो मुमकिन है के एक गै़र मुस्लिम नमाज़ पढ़ ले.. 


तबलीग़ सिर्फ तरग़ीब का नाम नहीं है.. 


हम उम्मत बन कर काम करें ये न कहे के हम जमात है अगर जमात कहते हो तो ये जमात नहीं बल्के फिरक़ा बन जाएगा उम्मत बन कर उम्मत में काम करो.. 


किसी से ये न पुछे के आपको कलमा याद है क्योंके अगर उसे याद होगा तो बदज़न होगा और अगर न याद होगा तो शर्मिदा होगा..  बल्के ये कहे के भाई मेरा कलमा सुन लो सही है या नहीं..  तबलीग़ हिकमत का नाम है... 


ये तो पुरा मजमा अज़्म करे के नमाज़ नहीं छोड़ोंगे... हुज़ुर सल् लल्लाहु अलयही वसल्लम के ज़माने में एक गैर मुस्लिम से ईमान लाते हुए ये कहा जाता था के नमाज़ नहीं छोड़ोगे और इस ज़माने में अफसोस की बात है मुसलमानों से अ़ज़्म करवाना पढ़ता है के नमाज़ नहीं छोड़ोगे.. 


ईस रास्ते में निकलना ईमान ओर ईबादात की तकमील के लिये है.. 


तबलीग़ कोई फिरक़ा नहीं बल्के ये बराहे रास्त सहाबा रजी़.  के तरीक़ो से साबित है.. 


उलमा जमातों में निकल कर ऐसी मेहनत करे के उम्मत का हर फर्द ईमामत का क़ाबिल हो जाए... उलमा जमात में निकल कर कुरान, फराईज़ और दीन के मसाईल की मश्क़ करवादें... 


जितना नमाज़ में कमाल होगा उतना दीन में कमाल होगा..  नमाज़ अल्लाह से बराहे रास्त ख़ज़ाने लेने का रास्ता खोलेगी.. 


मेहनत आ़माल पर कर के अल्लाह से उम्मीद रखना ये नबियों का तरीक़ा है....और अगर मेहनत असबाब पर मेहनत कर के अल्लाह से उम्मीद कर रहा है तो ये कुफ्फार और मुश्रिकीन का तरीक़ा है... 


असबाब ईख्तियार कर के अल्लाह पर तवक्कुल करना...  बगै़र असबाब के इख्तियार किए बगैर तवक्कुल असल नहीं है.. 


अवाम को चाहिए के उलमा की सोहबत इख्तियार करे... 


हमारा ये मामुल रहे के जमात में निकल कर उलमा और अमीर को चाहिए के रोज़ाना 2-4 आयतें कुरान का सबक़ दिया जाए और कुरान को सिखलाने की रोज़ाना कोशिश की जाए.. 


औरतें और मर्द जो मेहरम है आपस में बैठ कर हर एक से कुरान की आयते सीखी जाए और हर एक को सिखाया जाए ये हर मर्द की ज़िम्मेदारी है के अपने घर की हर औरत का क़ुरान सही करवाए... 


हज़रत उमर जब अपनी बहन के घर गए तो वहाँ कुरान को सीखने सिखाने का हलका़ चल रहा था... 


हर घर में कुरान का हल्क़ा हो..  हज़रत फरमाते थे के इस क़ुरान की बरकत से हज़रत उमर को इस्लाम में दाखिल किया.. 


दावत इलल्लाह की मेहनत जिस तरह मर्दो की ज़िम्मेदारी है उतनी ही औरतों की भी ज़िम्मेदारी है... 
दुनिया के मुक़ाबले में तो औरतें कहें के हम दुनिया के साथ चले..  ये बहोत बुरी ऐंब की बात है के औरतें काम करें और मर्द खाए..  और दीन के मामले में मर्द कहे के ये औरतों का काम नहीं है...


ईस ज़माने की सबसे बड़ी जहालत है के हर शख्स कहे के खुद कमाओ बल्के ये हैवानियत है के हर जानवर ख़ुद अपना इंतज़ाम करे... 


अम्र बिल मारुफ और नही अनिल मुंकर हर मर्द औ़रत सबकी ज़िम्मेदारी है... 


उम्मत मुर्तद हो रही है और तुम बैठ कर ख़याल करो के काम करे या न करे... 


ईदारों से फारिग़ होने वाले अपनी अपनी मस्जिद में दर्सगाहें बनाएँ और अ़मल के ज़रिए लोगों में दीन को सिखाए और लोगों को मस्जिद से जोड़े... 


मदारिस उलमा के बनने की जगह है और मसाजिद उलमा के इस्तेमाल होने की जगह है... 


अफज़ल ज़िक्र कुरान की तिलावत है... रोज़ाना कुरान की तिलावत का मामुल बनाएँ.. 


क़ुरान के तर्जुमे को देखना आ़म से आ़म इंसान को देखना ज़रुरी है के मेरा अल्लाह मुझसे क्या कह रहा है..  हर शख्स कुरान के तर्जुमे को देखें ओर उलमा से पुछ पुछ कर तर्जुमे को पढ़े और कुरान की तिलावत का एहतमाम करे... 


मुसलमानों की तन्हाईयों के गुनाह मुसलमानों के आपस में फितने फसाद का ज़रिया है..  


जो अपने और अल्लाह के मामले को दुरुस्त करले.. अल्लाह उसके और मख्लुक के दरमियान के रास्तों को दुरुस्त कर देता है.. 


सिर्फ ईबादात पर जन्नत नहीं बल्के अपने मामलात को भी दुरुस्त करो...



दुआ की दरख्वास्त..